Ravidas Ji:
'मन चंगा, तो कठौती में गंगा' क्यों लिखी ये कहावत, दिलचस्प है इसकी कहानी जानें
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Jyanati 2025: रविदास जयंती 12 फरवरी 2025 को
है. रविदास जी की कहावत मन चंगा तो कठौती में गंगा में गंगा का जिक्र क्यों किया
है. इसका महत्व क्या है.
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Jyanati 2025: 12 फरवरी 2025 को माघ पूर्णिमा पर रविदास जयंती मनाई
जाएगी. रविदास जी की रचनाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं. इन्हीं में से एक है
'मन चंगा, तो कठौती में गंगा’ अर्थ -
मन शुद्ध है, नीयत अच्छी है तो वह कार्य गंगा के समान पवित्र
है. रविदास जी की इस कहावत में कठौती की तुलना गंगा से क्यों कई गई. इसके पीछे एक
बेहद दिलचस्प कहानी है.
'मन चंगा, तो कठौती में गंगा’
एक दिन संत रविदास अपनी झोपड़ी में बैठे प्रभु का
स्मरण कर रहे थे तभी एक राहगीर ब्राह्मण उनके पास अपना जूता ठीक कराने आया. रैदास
ने पूछा कहां जा रहे हैं, ब्राह्मण बोला गंगा स्नान करने
जा रहा हूं.
जूता ठीक करने के बाद ब्राह्मण ने रविदास जी को
मुद्रा दी लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया. कहा कि यह मुद्रा मेरी तरफ से
मां गंगा को चढ़ा देना ब्राह्मण जब गंगा पहुंचा और गंगा स्नान के बाद जैसे ही
ब्राह्मण ने कहा- हे गंगे रविदास की मुद्रा स्वीकार करो, तभी गंगा जी से एक हाथ आया और उस मुद्रा को लेकर बदले
में ब्राह्मण को एक सोने का कंगन दे दिया.
ब्राह्मण जब गंगा का दिया कंगन लेकर वापस लौट रहा था, तब उन्हें विचार आया कि रैदास को कैसे पता चलेगा कि
गंगा ने बदले में कंगन दिया है, मैं इस कंगन को राजा को दे देता
हूं, जिसके बदले मुझे उपहार मिलेंगे.
उसने राजा को कंगन दिया, बदले में उपहार लेकर घर चला
गया.जब राजा ने वो कंगन रानी को दिया तो रानी खुश हो गई और बोली मुझे ऐसा ही एक और
कंगन दूसरे हाथ के लिए चाहिए.
राजा ने ब्राह्मण को बुलाकर कहा वैसा ही कंगन एक और
चाहिए, अन्यथा तुम्हें दंड मिलेगा.
ब्राह्मण संकट में आ गया, सोचना लगा किदूसरा कंगन कहां से
लाऊं? डरा हुआ ब्राह्मण संत रविदास के
पास पहुंचा और सारी बात बताई. रविदास जी बोले कि तुमने मुझे बिना बताए राजा को
कंगन भेंट कर दिया, इससे परेशान न हो.
तुम्हारे प्राण बचाने के लिए मैं गंगा से दूसरे कंगन
के लिए प्रार्थना करता हूं. ऐसा कहते ही रैदासजी ने अपनी वह कठौती उठाई, जिसमें वो चमड़ा गलाते थे, उसमें पानी भरा था. रविदास जी ने मां गंगा का आह्वान
कर अपनी कठौती से जल छिड़का, जल छिड़कते ही कठौती में एक वैसा
ही कंगन प्रकट हो गया.
रविदास जी ने वो कंगन ब्राह्मण को दे दिया. ब्राह्मण
खुश हो गया और कंगन राजा को भेंट कर दिया. तभी से यह कहावत प्रचलित हुई कि ‘मन
चंगा, तो कठौती में गंगा’. इसका एक
अर्थ ये भी है कि नीयत साफ होगी तो स्वंय ईश्वर भी आपकी मदद के लिए आपके दर पर आ
जाएंगे.
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