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368 वर्ष पहले औरंगजेब और दारा शिकोह की वो लड़ाई, फिर फूट गई हिंदुओं की किस्मत

368 वर्ष पहले औरंगजेब और दारा शिकोह की वो लड़ाई, फिर फूट गई हिंदुओं की किस्मत


मुगल वंश में उत्तराधिकार की अजीब प्रथा थी। दुनियाभर में राजशाही परंपरा इस सिद्धांत पर कायम थी कि राजा की मृत्यु के बाद सिंहासन पर उनके सबसे बड़े बेटा का अधिकार होगा। इससे अलग, मुगलों में उत्तराधिकार का फैसला 'तलवार की धार' से हुआ करता था।मुगल बादशाह शाहजहां 1657 के सितंबर माह में गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। वो मूत्र संबंधी समस्याओं और कब्ज से जूझ रहे थे। इस कारण लंबे समय तक जनता को झरोखा दर्शन नहीं दे रहे थे। इससे अटकलें लगने लगीं कि कहीं बादशाह का इंतकाल तो नहीं हो गया। इन्हीं अटकलों के बीच शाहजहां के चार पुत्रों दारा शिकोह, शाह शुजा, औरंगजेब और मुराद बख्श के बीच शाही सिंहासन पर वर्चस्व का बेहद भयावह संघर्ष छिड़ गया। यह संघर्ष आज ही के दिन 28 मई को दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच युद्ध में तब्दील हुआ। आइए, 368 वर्ष पहले आज ही के दिन सामुगढ़ के मैदान में हुए युद्ध की कहानी जानते हैं।

शाहजहां की मृत्यु की अटकलों के बीच गुटबंदी

शाहजहां ने अपने बड़े बेटे दारा शिकोह को अपना उत्तराधिकारी नामित किया था। 

शाहजहां की मृत्यु की अफवाहों के बीच औरगंजेब ने मुराद और कुछ हद तक शुजा के साथ गुप्त पत्राचार शुरू कर दिया। उसने मुराद के साथ गठबंधन करने में सफल रहा। 

औरंगजेब ने अपनी जीत पर मुराद को पंजाब, सिंध, काबुल और कश्मीर सहित मुगल क्षेत्रों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा देने का वादा किया। हालांकि, यह गठबंधन औरंगजेब की ओर से एक रणनीतिक छल था, क्योंकि उसने बाद में मुराद को धोखा देकर मार डाला। 

शाही परिवार में जब गुटबंदी का दौर चरम पर था, तब राजकुमारी जहांआरा बेगम ने बड़े पैमाने पर दारा का समर्थन किया तो उनकी बहन रोशनआरा बेगम ने औरंगजेब का खुलकर साथ दिया। 

शाहजहां की मृत्यु की अटकलों के बीच 

बहादुरपुर और धर्मत की लड़ाई 

शाह शुजा सैन्य कार्रवाई शुरू करने वाले पहले भाइयों में से था, जिसने अपनी सेना को बंगाल से आगरा की ओर मार्च किया। 

जवाब में दारा शिकोह ने शुजा को रोकने के लिए एक पर्याप्त शाही सेना भेजी। बहादुरपुर की लड़ाई 24 फरवरी, 1658 को बनारस से लगभग 5 मील उत्तर-पूर्व में हुई । इस मुकाबले में शुजा की सेना निर्णायक रूप से पराजित हुई, और उसे बंगाल की ओर पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा।

उधर, औरंगजेब और मुराद ने आगरा की ओर उत्तर की ओर अपना संयुक्त मार्च शुरू किया। इसी क्रम में दोनों की सेनाएं गंभीर नदी पर धर्मत गांव में इकट्ठा हुईं। यहीं उनका सामना शाहजहां की भेजी गई शाही सेना से हुआ, जिसकी कमान महाराजा जसवंत सिंह राठौर ने संभाली थी। वो दारा शिकोह के सहयोगी थे। 15 अप्रैल, 1658 को नर्मदा नदी के तट पर लड़ी गई धर्मत की लड़ाई में औरंगजेब और मुराद ने निर्णायक जीत हासिल की।


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